नवमः पाठः

महाकवि कालिदासः – Sanskrit Chapter 9 in Assamese and English – SEBA Class 10
কালিদাস সংস্কৃত সাহিত্যজগতত সৰ্বশ্ৰেষ্ঠ কবিৰূপে সমাদৃত হৈ আহিছে৷ নিজৰ অনুপম ৰচনা-ৰাজিৰে তেওঁ সংস্কৃত সাহিত্যৰ ভঁৰাল অনন্যভাৱে চহকী কৰি গৈছে। কালিদাসৰ নামত অনেক গ্ৰন্থ পোৱা যায় যদিও আধুনিক পণ্ডিতসকলে সাতখন গ্ৰন্থহে প্ৰামাণিক বুলি ক’ব খোজে। সেয়া হৈছে—
২ খন মহাকাব্য—
(১) रघूवंशम् আৰু
(২) कुमारसम्भवम्।
৩ খন নাটক—
(১) अभिज्ञानशकुन्तलम्
(২) विक्रमोर्वशीयम्
আৰু (৩) मालविकाग्निमित्रम्।
২ খন খণ্ডকাব্য—
(১) मेघदूतम्
আৰু (২) ऋुतुसंहारम्।
কালিদাসৰ সকলো সাহিত্যকৰ্মতে তেওঁৰ অসাধাৰণ কবি-প্ৰতিভাৰ স্বাক্ষৰ পোৱা যায় যদিও ‘अभिज्ञानशकुन्तलम्’ নাটকখনকে তেওঁৰ সৰ্বশ্ৰেষ্ঠ ৰচনা বুলি পণ্ডিতসকলে অভিহিত কৰিছে—
कालिदासस्य सर्वस्वमभिज्ञानशकुन्तलम। কালিদাসে অনন্য প্ৰতিভাৰে সংস্কৃত সাহিত্যৰ সকলো কবিকে অতিক্ৰম কৰিছে। সেয়েহে কেৱল ভাৰতীয়সকলৰ মাজতে নহয়, বিদেশৰো অনেক পণ্ডিত আৰু সংস্কৃতপ্ৰেমীৰ পৰা তেওঁ উচ্চ প্ৰশংসা বুটলিবলৈ সক্ষম হৈছে।
Kalidasa has been hailed as the greatest mastermind in Sanskrit poetry. He has enriched Sanskrit literature with his Invaluable writings of varied branches. A good number of books have been ascribed to Kalidasa. But modern scholars consider only the following seven books as the authentic ones:
2 Mahakavyas :
(i) रघुवंशम् and
(ii) कुमारसम्भवम्
3 Dramas:
(i) अभिज्ञानशकुन्तलम्
(ii) विक्रमोर्वशीयम् and
(iii) मालविकाग्निमित्रम्
2. Khandakavyas or Lyrics :
(i) मेघदूतम् and
(ii) ऋतुसंहारम्।
Although in all these works Kalidasa has exhibited the stamp of his extraordinary genius, still अभिज्ञानशकुन्तलम् is hailed as the best of his creations :
कालिदासस्य सर्वस्वमभिज्ञानशकुन्तलम्।
Kalidasa really excells all other poets in Sanskrit and he has been hailed high not only by his countrymen, but by scholars and readess across the globe as well.
विना वेदं विना गीतां विना रामायणीं कथाम्।
विना कविं कालिदासं भारतं भारतं नहि।।
भारतगौरवस्य कविकुलगुरोः कालिदास्य नाम निखिले साहित्यसंसारे सुपरिचितम् अस्ति। अस्य महाकवे: कीर्तिराशि: देशदेशान्तरे प्रसृता। परन्तु कविकालिदास: कदा कुत्र कं वंशं स्थलविशेषं च समलंकृतवान् इति अस्मिन् विषये विसम्बाद: अस्ति। केचित् कविकुलगुरुं काश्मीरवासिनं निगदन्ति, अन्ये वंगवासिनम् अपरे च उज्जयिनीं नगरीं कवेरस्य जन्मस्थानं कथयन्ति। अस्य महाकवे: विकाशकालम् अधिकृत्यापि विदुषां वैमत्यं दृश्यते। तथापि एतत् निश्चितं यत् कालिदास: चन्द्रगुप्तस्य विक्रमादित्यस्य भूपते: राजसभायां नवरत्नेषु अन्यतम आसीत्। साम्प्रतिकैरनेकै: कविभि: ईशवीय-पञ्चमशताब्दीत: सप्तमशताब्दीपर्यन्तं कालिदासस्य समय: निश्चीयते।
कालिदास: रघुवंशम्, कुमारसम्भवम् चेति द्वे महाकाव्ये, ऋतुसंहारम् मेघदूतम् चेति द्वे खण्डकाव्ये, अभिज्ञानशकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् चेति त्रीणि नाटकानि विरचितवान्। श्रुतबोधम्, नलोदयम्, श्रृंगार-तिलकम्, पुष्पबाणविलासम् इति एतेऽपि ग्रन्था: कालिदासस्य कृतय: इति मन्यन्ते केचित् मनीषिण:।
रघुवंशमहाकाव्यं महाकवे: अनुपमा कृतिरस्ति। एकोनविंशतिसर्गात्मके अस्मिन् महाकाव्ये दिलीपादारभ्य अग्निवर्णपर्यन्तानां इक्षाकुवंशीयानां नृपतीनां वर्णनं प्राप्यते। कुमारसम्भवमहाकाव्ये कार्तिकेयजन्मवर्णनम् उपलभ्यते। अस्मिन् काव्ये सप्तदशसर्गा: वर्त्तन्ते। ऋतुसंहारनामके खण्डकाव्ये षट् सर्गा: सन्ति। तत्र च क्रमश: एकैकस्य ऋतो: वर्णनं वर्त्तते। मेघदूतं भागद्वये विभक्तमस्ति— पूर्वमेघ: उत्तरमेघश्च। अस्य कथासार: त्वयमेव यत् कुबेरशापग्रस्त: कश्चित् यक्ष: रामगिरिनामधेये पर्वते निवसति स्म। स विरही यक्ष: एकं मेघखण्डमेव दूतरूपेण नियोज्य अलकापुरीस्थितायै स्वकान्तायै प्रेषयामास।
अभिज्ञानशकुन्तलनाटकं न केवलं कालिदासीयसाहित्ये, अपि तु विश्वनाट्यसाहित्येऽपि श्रेष्ठं स्थानम् अधिकरोति। उक्तं च- ‘काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला’ इति। सप्ताङ्कविशिष्टे नाटकेऽस्मिन् दुष्यन्तशकुन्तलयो: गान्धर्वविवाहमधिकृत्य सर्वा कथा उपनिबद्धा सन्ति। मालविकाग्निमित्रनाटके अग्निमित्रमालविकयो: प्रेमकथा वर्णिता। तथा च विक्रमोर्वशीयनाटके पुरूरवोर्वश्यो: कथा उपनिबद्धा अस्ति।
एषु समग्रेषु एव काव्येषु तथा नाटकेषु नानारसानां सम्यक् प्रयोग: भवति, येन सहृदयानां हृदये अनाविल आनन्दो जायते। एवं कालिदास: निरुपमकाव्यसम्पदा अनुपमया स्वप्रतिभया च समग्रे एव संस्कृतवाङये अत्युत्कृष्टं स्थानं लभते। प्रकृतसौन्दर्यवर्णने तु अयं सम्राङेव भवति। अत एव अस्माभि: निगद्यते —
‘‘न कालिदासाद् अपर: कवीन्द्र:’’ इति।
শব্দাৰ্থ : Word Meaning of Chapter 9 of SEBA class 10 in Assamese and English
कीर्तिराशि: | যশস্যা/ fame |
विसम्वाद: | বাদানুবাদ, মতভেদ/ dispute |
निगदन्ति | কয়, উল্লেখ কৰে/ state,mention. |
भिन्नमता: | ভিন্নমত, পৃথকমত, দ্বিমত/ different opinions. |
वैमत्यं | ভিন্নমত, পৃথকমত/ different opinions. |
साम्प्रतिक: | আধুনিক/ modern. |
मनीषिण: | বিদ্বান লোকে, পণ্ডিতে/ the scholars. |
आरभ्य | আৰম্ভ কৰি/ starting from. |
सर्गा: | সৰ্গ/ cantos. |
दूत: | দূত, বাৰ্ত্তাবহ/ massenger. |
कथासार: | কথাবস্তু/ essential part. |
सकाशे | ওচৰলৈ/ near. |
स्वकान्ता | নিজ পত্নী/ own spouse. |
प्रेषयामास | পঠিয়াইছিল/ conveyed,sent. |
अङ्क: | নাটকৰ অঙ্ক/ Act(a part of a play) |
उपनिबद्ध: | সন্নিবিষ্ট শৃংখলাবদ্ধ/ arranged. |
रम्यम् | মনোমোহা/ beautiful. |
गान्धर्वविवाह: | আঠপ্ৰকাৰ বিবাহৰ এবিধ/one of the eight forms of marriage. তুলনীয়:/ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथा सुरः। गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचशश्चाष्टमोऽधमः।। (विष्णुपुराणम्) |
लभते | লাভ কৰিছে/ attains |
कवीन्द्र: | কবিসকলৰ ভিতৰত শ্ৰেষ্ঠ/ greatest of all poets. |
পাঠভিত্তিক ব্যাকৰণ – Textual Grammar of Chapter 9 Sanskrit class 10
प्रसृता | प्र-√सृ + त्त्क (स्त्रीलिंगे)। |
अस्ति | √अस् + लट् (परस्मैपद) प्रथम पुरुषएकवचने। |
निगदन्ति | नि-√गद् + लट् अन्ति। |
कृतवान् | √कृ + त्त्कवतु, प्रथमाविभत्त्कौ एकवचने। |
कथयन्ति | √कथ् + लट् अन्ति। |
महाकवि: | महान् कवि: (कर्मधारय)। |
आसीत् | √अस् + लङ् द्। |
मन्यन्ते | √मन् + लट् अन्ते। |
कृतिरस्ति | कृति: + अस्ति। |
प्राप्यते | प्र-√आप् + लट् ते (कर्मणि)। |
दिलीपादारभ्य | दिलीपात् + आरभ्य। |
महाराजानाम् | महान्त: राजान: (कर्मधारयः), तेषाम्। |
उपलभ्यते | उप-√लभ् + लट् ते (कर्मणि)। |
वर्तते | √वृत् + लट् ते। |
सन्ति | √अस् + लट् अन्ति। |
पर्वते | अधिकरणे सप्तमी। |
एकैकस्य | एक + एकस्य। |
त्वयमेव | तु + अयम् + एव। |
उपनिबद्धा | उप-नि + बध् + त्त्क (स्त्रीलिङ्गे) |
लभते | √लभ् + लट् ते। |
सम्राडेव | सम्राट् + एव। |
कवीन्द्र: | कवि + इन्द्र:। कवीनाम् इन्द्र: (षष्ठी ततपुरुष: )। |
हृदये | अधिकरणे सप्तमी। |
निगद्यते | नि-√गद् + लट् ते (कर्मणि)। |
অনুশীলনী (Exercise)
1. তলত দিয়াবোৰৰ ভাব বহলাই লিখাঁ :
Expand the idea of the following :
(a) विना कविं कालिदासं भारतं भारतं नहि।
(b) न कालिदासाद् अपर: कवीन्द्र:।
(c) काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला।
2. তলৰ প্ৰশ্নবোৰৰ উত্তৰ সংস্কৃতত লিখাঁ :
Answer the following questions in Sanskrit.
(क) कुमारसम्भवमहाकाव्ये कस्य कथा उपलभ्यते?
(ख) कालिदासस्य जन्म कुत्र अभवत्?
(ग) मेघदूतकाव्ये क: मेघं दूतरूपेण प्रेषयामास?
(घ) कालिदासविरचितस्य महाकाव्यद्वयस्य नाम किम्?
(ङ) अभिज्ञानशकुन्तलम् इति नाटके कति अङ्का: सन्ति?
(च) विक्रमोर्वशीयनाटके कस्य कथा उपलभ्यते?
(छ) कालिदासविरचितस्य खण्डकाव्यद्वयस्य नाम किम्?
(ज) कुमारसम्भवमहाकाव्ये कति सर्मा: सन्ति?
(झ) मेघदूतकाव्ये कति भागा: सन्ति?
3. তলত দিয়া পদসমূহৰ ব্যুৎপত্তি নিৰ্ণয় কৰাঁ :
Derive the following words:
लभन्ते; दृश्यते; वर्त्तन्ते; निवसति; नियोज्य; प्रेषयामास; अधिकरोति; भवति; जायते; निगद्यते।
4. তলৰ শব্দকেইটাৰ সংস্কৃত প্ৰতিশব্দ লিখাঁ :
Write the Sanskrit synonyms of the following words:
कुवेर:; दूतः; मेघ:; कवि:; नृपति; भूपति:।
5. তলৰ শব্দবোৰৰ চমুটোকা লিখাঁ :
Write short notes of the following words :
अभिज्ञानशकुन्तलम्; मेघदूतम्; महाकाव्यम्; कालिदास: ; ऋतुसंहारम्; कुमारसम्भवम्; नवरत्नानि; खण्डकाव्यम्।
6. উদাহৰণটোৰ সহায়ত তলৰ খালী ঠাইবোৰ পূৰণ কৰাঁ :
Fill up the gaps in the following with the help of the example cited.
উদাগহৰণ (example) ———— मेघदूतम् एकं खण्डकाव्यम्।
(क) रघुवंशम् ———— ————।
(ख) अभिज्ञानशकुन्तलम् ——— ———।
(ग) ऋतुसंहारम् ——— ———।
(घ) मालविकाग्निमित्रम् ———— ————।
(ङ) कुमारसम्भवम् ——— ———।
(च) विक्रमोर्वशीयम् ——— ———।
7. উদাহৰণসহ কৰ্মবাচ্যৰ লক্ষণ লিখাঁ।
Define and illustrate कर्मवाच्य.
8. কাৰক মানে কি বুজাঁ? সম্বন্ধ পদ কাৰক কিয় নহয়?
What do you mean by कारक? Why is सम्बन्ध पद not a कारक ?
9. তলৰ বাক্যবোৰ শুদ্ধ কৰাঁ :
Correct the following sentences :
(क) कालिदास: नाटका: विरचितवान्।
(ख) केचित् मनीषिण: मन्यते।
(ग) षट् सर्गा: अस्ति।
(घ) सर्व कथा उपनिबद्धा सन्ति।
(ङ) मुनीमौ तपस्यत:।
10. তলৰ অনুচ্ছেদটি পঢ়ি নিৰ্দ্দেশ অনুসাৰে সংস্কৃতত প্ৰশ্নবোৰৰ উত্তৰ লিখাঁ :
Read out the following passage and give the answers to the questions in Sanskrit as directed :
अस्ति करिमंश्चिदधिष्ठाने शुद्धपटो नाम रजक:। तस्य च गर्दभ एकोsस्ति। सोऽपि घासाभावाद् अतिदुर्बलतां गत:। तेन च रजकेन अटव्यां भ्रमता मृतव्याघ्रो दृष्ट: चिन्तितं च, ‘अहो शोभनम् आपतितम्। अनेन व्याघ्रचर्मणा प्रतिच्छाद्य रासभं रात्रौ यवक्षेत्रेषूत्सृजामि। तेन च क्षेत्रपाला व्याघ्रं मत्वा न निष्कासयिष्यन्ति’। तथानुष्ठिते रासभो यथेच्छं यवभक्षणं करोति। प्रत्यूषे रजको भूयोऽपि स्वाश्रमं नयति।
(क) रजकस्य नाम किम् आसीत्?
(ख) रजक: कुत्र आसीत्?
(ग) मृतव्याघ्रं दृष्ट्वा रजक: किम् अचिन्तयत्?
(ङ) रजकस्य गर्दभ: कस्मात् कारणात् अतिदुर्बलतां गत: ?
(च) ‘प्रत्यूषः’ शब्दस्य संस्कृत-प्रतिशब्द: प्रदेय:।
টোকা : Notes For The Chapter 9 of SEBA Sanskrit Class 10 in Assamese and English
(क) महाकाव्यम ः সমগ্ৰ সংস্কৃত সাহিত্যতে মহাকাব্যসমূহে বিশাল স্থান অধিকাৰ কৰি আছে।
সাহিত্যদৰ্পণৰ প্ৰণেতা বিশ্বনাথ কবিৰাজে মহাকাব্যৰ লক্ষণ নিৰ্ধাৰণ কৰি কৈছে—মহাকাব্য এখন সৰ্গত বিভক্ত হোৱা উচিত আৰু তাত কমেও আঠটা সৰ্গ থাকিব লাগিব। ইয়াৰ আৰম্ভণিতে ইষ্টদেৱতাৰ নমস্কাৰ, আশীৰ্বাদ অথবা মূল কাহিনীৰ আভাস থাকিব লাগিব। মহাকাব্যখন নায়কৰ নামেৰে অথবা কাহিনীভাগৰ মূল বিষয়ৰ নামেৰে নামাঙ্কিত হ’ব লাগিব ইত্যাদি।
সংস্কৃত সাহিত্যত পৰম্পৰাগতভাৱে পাঁচখন মহাকাব্যক আদৰ্শৰূপে স্বীকাৰ কৰা হৈছে। এই পঞ্চমহাকাব্য হ’ল—ৰঘুৱংশম্, কুমাৰসম্ভৱম্ (মহাকবি কালিদাসৰ), কিৰাতাৰ্জুনীয়ম্ (ভাৰবিৰ), শিশুপালবধম্ (মাঘৰ) আৰু নৈষধচৰিতম্ (শ্ৰীহৰ্ষৰ)।
महाकाव्यम : The महाकाव्यऽ or epics constitute a huge volume of Sanskrit literature.
The characteristic features of a महाकाव्य according to Sahityadarpana of विश्वनाथ कविराज are : a महाकाव्य is composed in cantos (सर्ग) and there will be not less than eight cantos. It should start with a salutation or benediction or a reference to the main subject. It should be named after the main hero or the main theme of the same and so on.
In sanskrit literature five महाकाव्यऽ are traditionally regarded as ideal ones and they are namely रघुवंशम् and कुमारसम्भवम् of कालिदास, किरातार्जुनीयम् of भारवि, शिशुपालवधम् of माघ and नैषधचरितम् of श्रीहर्ष.
(ख) नवरत्न : গুপ্তবংশীয় ৰজা দ্বিতীয় চন্দ্ৰগুপ্ত বিক্ৰমাদিত্যৰ (৩৮০-৪১৩) ৰাজসভা শুৱনি কৰা ন জন পণ্ডিতক একেলগে নৱৰত্ন বোলা হৈছিল। তেওঁলোক হ’ল—ধন্বন্তৰি, ক্ষপণক, অমৰসিংহ, শংকু বেতালভট্ট, খটখৰ্পৰ, কালিদাস, বৰাহমিহিৰ আৰু বৰৰুচি।
‘धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंह-शङ्कु-वेतालभट्ट-खटखर्पर-कालिदासा:।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपते: सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव विक्रमस्य॥’
The court of Chandragupta II, Vikramaditya, (380-413) was ornamented by nine scholars and they were known as Navaratnas (nine jewels). They namely were-Dhanvantari, Ksapanaka, Amarasimha, Shanku, Vetalabhatta, Khatakharpara, Kalidasa, Varahamihira and Vararuchi.
‘धन्वन्तरि-क्षपणकामरसिंह-शङ्कु-वेतालभट्ट-खटखर्पर-कालिदासाः।
ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानी वै वररुचिर्नव विक्रमस्य॥’
(ग) खण्डकाव्य : ই ক্ষুদ্ৰ আকাৰৰ কাব্য। আংশিকৰূপে ই মহা কাব্যৰ সদৃশ। সাহিত্যদৰ্পণৰ ষষ্ঠ অধ্যায়ত ইয়াৰ লক্ষণ। এনেদৰে দিয়া আছে— ‘खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैकदेशानुसारि च’। ই আকৌ গীতিকাব্য হিচাবেও জনাজাত। কিছুমান খণ্ডকাব্যৰ উদাহৰণ হ’ল—কালিদাসৰ মেঘদূতম্ আৰু ঋতুসংহাৰম্, জয়দেৱৰ গীতগোৱিন্দম্, শংকৰাচাৰ্যৰ ভজগোৱিন্দম্ আৰু সৌন্দৰ্যলহৰী ইত্যাদি।
It is a small poem. It resembles or imitates a महाकाव्य only partially. It is defined in साहित्यदर्पण (6th Chapter) as follows-‘खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैकदेशानुसारि च.’ It is also known as गीतिकाव्य. Some examples of खण्डकाव्य are मेघदूतम् and ऋतुसंहारम् of Kalidasa, गीत-गोविन्दम् of Jayadeva, भजगोविन्दम् and सौन्दर्यलहरी of Shankaracarya etc.
(घ) মহাকবি কালিদাসক প্ৰশংসা কৰি লিখা এটা শ্লোক :
A well-known verse written in praise of Kalidasa is :
पुरा कवीनां गणना-प्रसंगे कनिष्ठकाधिष्ठितकालिदासा।
अद्यापि तत्तुल्यकवेरभावादनामिका स्वार्थवती बभूव॥ -सुभाषित।